संन्यास का परिचय

इस वेब साइट पर संन्यास के विषय में ओशो ने जो कहाहै उसमें से चुनिंदा अंश दिए गए हैं। Osho on Sannyas, इन्हें पढ़ कर आप यह भी जानेंगे कि ओशो कासंन्यास कई वर्षों में किस तरह विकसित हुआ।

ओशो संन्यास की परिभाषा इस तरह करते हैं: “अपनाजीवन समग्रता से जीना और जिसकी परम और एकमात्र शर्त है: सजगता, ध्यान।” यदि आप अपनाजीवन इस तरह जीना चाहते हैं तो आपके लिए यह वेब साइट है। अब आप किसी व्यक्ति यासंस्था के मध्यस्थ हुए बगैर संन्यास ले सकते हैं। यह दृष्टिकोण व्यक्ति कीस्वतंत्रता और उसके चुनाव का सम्मान करता है।ओशो कहते हैं, “यह तुम्हारा निर्णय है। सदा ध्यानरहे, यहां जो भी घट रहा है वह तुम्हारा निर्णय है। अगर तुम संन्यासी हो तो यहतुम्हारा निर्णय है। अगर तुम संन्यास छोड़ते हो तो यह तुम्हारा निर्णय है। अगर तुमफिर से लेना चाहते हो तो भी वह निर्णय तुम्हारा ही होगा। मैं सब कुछ तुम पर छोड़ताहूं।”

ओशो की नजर में: “संन्यास आंदोलन का अर्थ है: सत्यके खोजियों का आंदोलन। और आंदोलन एक बहाव है, वही उसका अर्थ है। वह बहता रहता है, विकसित होता है।”ओशो ने यह भी कहा है: “जो भी बाह्य है उसे छोड़नेकी मैं भरसक कोशिश कर रहा हूं ताकि सिर्फ आंतरिक रह जाए जिसका तुम अन्वेषण कर सको।”ओशो के इस वक्तव्य का सम्मान करते हुए और संन्यास के बहाव को बनाये रखने की खातिरहम संन्यास की प्रक्रिया यथासंभव सरल और व्यक्तिगत कर रहे हैं। “उनका ध्यान उनकानिजी मामला है,” ओशो।संन्यास आंदोलन के बारे में ओशो ने कहा: “अब यहअकेले की और व्यक्तिगत यात्रा होगी। व्यक्ति स्वयं जिम्मेवार होगा। यह एक संघ यासभा नहीं होगी।”

और अंततः ओशो केशब्दों में:

“संन्यास आंदोलन नमेरा है न तुम्हारा है। वह तब था जब मैं यहां नहीं था; मैं जब नहीं रहूंगा तब भी यहरहेगा। संन्यास आंदोलन का इतना ही मतलब है, सत्य के खोजियों की धारा। वे यहां सदासे रहे हैं।”अगर आप ऐसे खोजी हैं तो तैयार हो जाएं स्वयं को यह अहसास दिलाने के लिए कि आप निश्चित ही एक संन्यासी हैं और इस आगे की प्रक्रिया को पूरा करें–बिना किसी बाहरी सहायता के।

आनंदलें!